शायद! मेरे मरने के बाद समाजवादी आन्दोलन और तेज हो जाए......
जनेश्वर मिश्र
जयन्ती:-5 अगस्त, 1933
(श्रावण शुक्ल पूर्णिमा संवत 1990)
महाप्रयाण:- 22 जनवरी, 2010
(माघ शुक्ल सप्तमी संवत 2067)
जनेश्वर जी के बारे में लोहिया जी की राय

मानता, अहिंसा, विकेन्द्रीकरण, लोकतंत्र और समाजवाद - ये पाँचों भारत की समग्र राजनीति के अंतिम लक्ष्य हैं। इन्हें जनेश्वर जैसे वैचारिक प्रतिबद्धता वाले संकल्प के धनी युवा ही सत्याग्रह के रास्ते पर चलकर प्राप्त कर सकते हैं। जनेश्वर में संगठन की अकूत क्षमता है। वह विश्वसनीय और जुझारू है, समाजवाद की लड़ाई के लिए ऐसे नौजवानों को आगे आना जरूरी है। उसके मन में ताकत के बल पर शोषक बने लोगों के प्रति क्रोध और गरीबों-पीडि़तों, कमजोरों के लिए अथाह करुणा है।
उसमें प्रतिभा है और दबे-कुचले वर्ग की बेहतरी के लिए बड़ा काम करने की इच्छा भी, ये दोनो बातें विरले लोगों में मिलती है........
-डा0 राम मनोहर लोहिया
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जनेश्वर जी के आकस्मिक निधन ने बहुतों को रुलाया और बहुत लोगों ने अपने को अनाथ महसूस किया। इलाहाबाद में उनकी शव-यात्रा में उमड़ी भीड़ ने जिस प्रकार अपनी नम आंखों से दिवंगत नेता को..

समाजवादी आंदोलन का जीवंत अध्याय
जनेश्वर मिश्र के रूप में समाजवादी आन्दोलन का एक जीवंत अध्याय खत्म हो गया है। जनेश्वर जी का पूरा जीवन संघर्ष को समर्पित था और इसकी शुरूआत स्कूल के वक्त में ही हो गई थी।

मानवता के नेता
वे सिर्फ भारत के नहीं अपितु मानवता के नेता थे। तिब्बत की आजादी के लिए और तिब्बतियों को न्याय दिलाने के लिए वे हमेशा प्रयासरत् रहे। उनके जाने से तिब्बतियों नें अपना सबसे बड़ा सहयोगी खो दिया।