सामूहिक प्रतिकार के प्रेरक

हिन्दुस्तान की आजादी के कुछ समय बाद उत्तरी भारत के नौजवानों को अपने संघर्ष एवं कृत्यांें से किसी ने सबसे अधिक प्रभावित और आकर्षित किया तो वे थे अपने जनेश्वर जी। जहाँ कहीं भी पुलिसिया उत्पीड़न या सरकारी दमन होता था, वहाँ पहुँचकर जनेश्वर जी दबे-कुचले लोगों को एकत्र कर सामूहिक प्रतिकार के लिए प्रेरित करते थे। साठ के दशक में सयुस के नेता के रूप में उनके नाम का डंका बजता था। जनेश्वर जी न केवल वैचारिक प्रेरणा देते थे अपितु उस विचार को मूर्तरूप देने का रास्ता भी प्रशस्त करते थे।

--माता प्रसाद पाण्डेय

अल्पसंख्यकों के रहनुमा

जनेश्वर मिश्र डा0 राम मनोहर लोहिया के सिद्धान्तों को बहुत खूबी से कार्यान्वित करते थे। वे अल्पसंख्यकों के सच्चे रहनुमा और पैरोकार थे। उन्होंने हमेशा अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों को मुख्यधारा से जुड़कर साथ बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वे हिन्दी और उर्दू दोनो को बराबर महत्त्व देते थे। उनकी एक-एक बात अनमोल होती थी। उनके जाने के बाद ऐसा लगता है जैसे हम लोगों ने अपना अभिभावक खो दिया

--नवाब अली अकबर

मानवता के नेता

वे सिर्फ भारत के नहीं अपितु मानवता के नेता थे। तिब्बत की आजादी के लिए और तिब्बतियों को न्याय दिलाने के लिए वे हमेशा प्रयासरत् रहे। उनके जाने से तिब्बतियों नें अपना सबसे बड़ा सहयोगी खो दिया।

--- यीशि डोल्मा (सांसद तिब्बत)

समाजवादी विरासत के जीवन्त प्रतीक

भारतीय राजनीति में जनेश्वर जी ने अपने लोहियावादी संघर्षशीलता और सैद्धान्तिक प्रतिबद्धता के कारण एक के बाद नई बुलंदियों को छुआ। मेरा और जनेश्वर जी का 55 वर्ष का बड़ा ही निकट सम्बन्ध रहा है। समाजवादी युवजन सभा में हम लोेगों ने एक साथ काम किया है। अगस्त 1955 में रजनीकान्त वर्मा और मुझे जनेश्वर जी के साथ सयुस की प्रान्तीय कार्यकारिणी में सम्मिलित किया गया। लखनऊ में आयोजित अधिवेशन में वे महामंत्री निर्वाचित हुए उनके नाम प्रस्ताव मेरे भ्राता संघर्ष के सहायक संपादक सत्यकेतु दुबे ने किया था। 1967 में वे लोकसभा के लिए चुने गये। 1977 के आम चुनाव के बाद वे भारत सरकार में मंत्री बने। सन् 1989 के चुनाव मे बाद वे विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में मंत्री रहे। देवगौड़ा और गुजराल की सरकार में भी वे कैबिनेट मंत्री रहे। सन् 1992 में जब मुलायम सिंह के जी नेतृत्व में सपा की स्थापना हुई तो इसे अमली जामा पहनाने में जनेश्वर जी अगली कतार में रहे।

संगठन और सरकार दोनों से ऊपर उठकर जनेश्वर जी का महान योगदान वैचारिक पक्ष के स्तर पर है। डा0 लोहिया के चिन्तन और भारत के समाजवादी आंदोलन की वैचारिक विरासत में उनकी गहरी पैठ थी। वे उस विरासत के एक महत्त्वपूर्ण भाष्यकार और यथा संभव इसके अनुरूप जीवन व्यतीत करने वाले एक ऐसे राजनेता थे जो देश भर के लोहिया वादियों को अपनी ओर आकर्षित करते थे। लोहिया के लोग के नाम पट्ट वाला उनका घर इस वैचाारिक विरासत का एक केन्द्र था और वे समाजवादी विरासत का जीवंत प्रतीक थे।

--- -प्रो0 सत्यमित्र दुबे
(प्रख्यात समाजशास्त्री व पूर्व कुलपति, डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय)

 

मुझे भली-भांति याद है जब मैं उनसे पहली बार मिली, उन्होंने एक पुस्तक ‘‘द्रौपदी और सावित्री’’ देते हुए मुझे डा0 लोहिया को पढ़ने और उसके बाद राजनीति करने की सलाह दी। उनकी मौजूदगी महिलाओं को सबल व सुरक्षाभाव प्रदान करती थी। वे नारियों को लोहिया की ही तरह पंचम वर्ण मानते थे और उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि देश का समग्र विकास नर-नारी समता के बिना सम्भव नहीं है।

- अंजना गुप्ता

 

जनेश्वर बाबा के पास रहकर ही जाना कि मानवता और समाजवाद किसे कहते हैं। उनके लिए अमीर-गरीब सब बराबर थे। देखा जाय गरीब का महत्त्व उनके लिए अधिक ही था। बाबा एक बरगद जैसे थे, थका-हारा मुसाफिर धूप से जलता हुआ बदन लेकर आता और शीतल छांह लेकर चला जाता। उनका घर मेरे जैसे न जाने कितनों का बसेरा व डेरा था। वे सच्चे अर्थों में नेता व अभिभावक थे।

- संजय यादव (कर्मचारी नेता)

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समाजवाद के केन्द्र-बिन्दु थे जनेश्वर जी

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साक्षात् लोहिया थे ‘‘छोटे लोहिया’’

मेरे राजनीतिक एवं वैयक्तिक जीवन में जनेश्वर जी का जो स्थान है, वो शब्दों की परिधि से परे है, उसे अभिव्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है।