जनेश्वर मिश्र - एक प्रेरक जीवन दर्शन

Deepak Mishra

इनकी चंद तस्वीरें कहीं महफूज कर लीजै,
सवाल उठेगा मुस्तकबिल में ऐसे लोग, कैसे थे?,
जमीं पर रहते थे, फरिश्तों के जैसे थे

समाजवाद के अनन्य व्याख्याता, शाश्वत व नवप्रवर्तनकारी वैचारिकी के क्रांतिधर्मी चिन्तक, शोषितों-पीडि़तों-वंचितों के प्रबल पैरोकार, त्यागमूर्ति, लोहिया के अप्रतिम अनुयायी जनेश्वर मिश्र का उल्लेख आते ही स्मृति पटल पर कई चित्र स्वतः ही उभरने लगते हैं। एक तस्वीर सामाजिक रूढि़यों का सार्वजनिक प्रतिकार करते हुए किशोर की होती है, दूसरी तस्वीर संघर्ष के बल पर समाजवाद और लोकतंत्र की अलख जगाने वाले प्रतिबद्ध युवा की होती है, तीसरी तस्वीर जनता के दुःख-दर्द-दंश एवं दलन को स्वर देने वाले प्रखर सांसद की, चैथी तस्वीर सत्ता के केन्द्र में बैठे एक ऐसे कुशल प्रशासक की होती है जिसे सत्ता की विकृतियां स्पर्श न कर सकीं, पांचवीं तस्वीर बिखराव एवं विखण्डन की दौर में भी साथियों को सहेज कर रखने वाले प्रतिबद्ध संगठक की होती है, छठीं तस्वीर में जो चेहरा उभरता है वह गरीबों और कमजोर कार्यकर्ताओं के अभिभावक का होता है। एक जनेश्वर अनेकानेक रूप...

-दीपक मिश्र

शायद! मेरे मरने के बाद समाजवादी आन्दोलन और तेज हो जाए......

Shri Janeshwar Mishr

जनेश्वर मिश्र

 

 

जयन्ती:-5 अगस्त, 1933

(श्रावण शुक्ल पूर्णिमा संवत 1990)

 

महाप्रयाण:- 22 जनवरी, 2010

(माघ शुक्ल सप्तमी संवत 2067)

जनेश्वर जी के बारे में लोहिया जी की राय

Ram Manohar Lohia

मानता, अहिंसा, विकेन्द्रीकरण, लोकतंत्र और समाजवाद - ये पाँचों भारत की समग्र राजनीति के अंतिम लक्ष्य हैं। इन्हें जनेश्वर जैसे वैचारिक प्रतिबद्धता वाले संकल्प के धनी युवा ही सत्याग्रह के रास्ते पर चलकर प्राप्त कर सकते हैं। जनेश्वर में संगठन की अकूत क्षमता है। वह विश्वसनीय और जुझारू है, समाजवाद की लड़ाई के लिए ऐसे नौजवानों को आगे आना जरूरी है। उसके मन में ताकत के बल पर शोषक बने लोगों के प्रति क्रोध और गरीबों-पीडि़तों, कमजोरों के लिए अथाह करुणा है।

उसमें प्रतिभा है और दबे-कुचले वर्ग की बेहतरी के लिए बड़ा काम करने की इच्छा भी, ये दोनो बातें विरले लोगों में मिलती है........

-डा0 राम मनोहर लोहिया

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